भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

167 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साडा माल सी सो तेरा हो गया जरा वेखना बरा खुदाइआं दा
तूं ही चटया ते तूं ही पालया ए ना एह बाप दा ते ना एह भाइयां दा
शाहूकार हो बैठी ऐ मार थैली खोह बैठी ऐं माल तूं साइयां दा
अग लैण आई घर सांभो ई एह तेरा है बाय ना भाइयां दा
गुडा हथ आया तुसां गुडियां दे अंनी चूही ते थोथयां घाइयां दा
वारस शाह दी मार ही वगे हीरे जेहा खोह लया वीर तूं भाइयां दा

शब्दार्थ
<references/>