भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

169 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:26, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आखो रांझे देनाल वयाह देवां इके बनड़े चा मंगाईए जी
हथी आपणी किते समान कीजे जान बुझ के लीक ना लाईए जी
भाइयां आखया चूचका एस मसलत<ref>भलाई</ref> असीं आखदे ना शरमाईए जी
साडा आखया जे कर मन्न लयें असीं खोहल के चाए सुनाईए जी
वारस शाह फकीर प्रेम शाही हीर उस तों पुछ मंगाइए जी

शब्दार्थ
<references/>