भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

17 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 29 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुसां छतरे मरद बना दिते सप रसियां दे करो डारीयो नी
राजे भोज दे मुख लगाम दे के चढ़ दौड़ियां हो टूनेहारीयो नी
कैरों पाडवां दी सभ गाल सुटी ज़रा गल दे नाल बुरियारीयो नी
रावण लंका लुटायके गरक होया कारन तुसां दे ही हैंसियारीयो नी

शब्दार्थ
<references/>