भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

18 बी / रश्मि भारद्वाज

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 22 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फ़ोर बाई फ़ोर के क्यूबिकल में फँसे इंसान को कितना उड़ना चाहिए !
ज़्यादा से ज़्यादा उसे देखना चाहिए
एक अदद गाड़ी का सपना
वह देख सकता है दो कमरों का आधुनिक फ़्लैट
और सजे-धजे बच्चे भी
फिर उसे सोचना चाहिए इ०एम०आई० के बारे में
सीखना चाहिए क्यूबिकल में साँस ले पाना
तयशुदा ऑक्सीजन की मात्रा के साथ

मुझसे पहले 18 बी में सव्यसाची बैठा करते थे
सुना वो बहुत कामचोर थे
(उनके सपनों में कविताएँ भी थी!)
मैं सबकी नज़र बचा अपनी कविताएँ फ़ाइलों के नीचे दबाती हूँ
फ़ोर बाई फ़ोर के इस क्यूबिकल में
सपने बाज़ार-रंग के होते हैं
उन्हें पूरा पाने के लिए ख़ुद को देना होता है पूरा

अगर आप आकाश के ताज़ा रंग देखना चाहते हैं
पृथ्वी का हरापन सँजोने की चाहत है
भागते हुए भी अक्सर रुक कर
अब भी देख लेते हैं पेड़, फ़ूल, गिलहरी, चिड़िया
ट्रैफ़िक पर गाड़ियों के बन्द शीशों में नज़र गड़ाती आँखें
और फ़ुटपाथ पर ठण्ड से काँपते उस बूढ़े को
और ले आते हैं सबको साथ अक्सर
अपने फ़ोर बाई फ़ोर के क्यूबिकल में
साबुत (बिना इ०एम०आई० के)

तो धीरे-धीरे आप नाकारा होते जाते हैं
18 बी के लिए