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212 / हीर / वारिस शाह

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डोली चढ़दयां मारियां हीर चीकां मैंनूं लै चले बाबला लै चले वे
मैंनूं रख लै बाबला हीर आखे डोली घत कहार नी लै चले वे
मेरा आखया कदी न मोड़दा सैं उह समें बाबल किथे गये चले वे
तेरी छतर छावें बाबल रूख वांगू घड़ी वांग मुसाफरां बह चले वे
दिन चार न रज अराम पाया दुख दरद मुसीबतां सह चले वे
साडा बोलया चालया माफ करना पंज रोज तेरे घर रह चले वे
लै वे रांझया रब्ब नूं सौंपयों तूं असी जालमा दे वस पै चले वे
जेहड़े नाल खयाल उसारदी सां खाने सभ उमैद दे ढह चले वे
असां वत ना आय के खेडना ई बाजी इशक वाली करके तह चले वे
सैदे खेड़े दी अज मुकान होई रोन पिटन करदे हाए हाए चले वे
चारे कन्नियां मेरियां वेख खाली असीं नाल नहीयों कुझ लै चले वे
कूड़ी दुनियां ते शान गुमान कूड़ा वारस शाह होरीं सच कह चले वे

शब्दार्थ
<references/>