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224 / हीर / वारिस शाह

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गई उमर ते वकत फिर नहीं मुड़दे गए करम ते भाग न आवंदे ने
गई गल जबान थीं नहीं मुड़दी गए रूह कलबूत<ref>शरीर</ref> ना आंवदे ने
गई जान जहान थीं छड जुसा कई होर सयाने फरमांवदे ने
मुड़ एतने फेर जे आंवदे ने रांझे यार होरी मुड़ आंवदे ने
अगे वाहियों चा गवायो ने हुन इशक थीं चा गवांवदे ने
रांझे यार होरां एह थाप छडी किते जा के कन्न पड़वांवदे ने
इके अपनी जिंद गवाउंदे ने इके हीर जटी बन्न लयांवदेने
वेखो जट हुण फंद चलांवदे ने बन चेलड़े घोन हो आंवदे ने
वारस शाह मियां सानूं कौन सदे भाई भाबियां हुनर चलांवदे ने

शब्दार्थ
<references/>