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225 / हीर / वारिस शाह

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मसलत हीर दयां सौहरयां एह कीती मुड़ पेइड़े<ref>मायका</ref> एह न घलनी जे
चाक मुड़ चम्बड़े विच सयालां एह गल कुसाक<ref>बेरीत, बुरी</ref> दी हलनी जे
आखर रन्ना दी जात बे वफा हुंदी जा पेईअड़ घरीं एह मलनी जे
वारस शाह दे नाल ना मिलनदेनी एह गल ना किसे उथलनी<ref>कहना</ref> जे

शब्दार्थ
<references/>