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226 / हीर / वारिस शाह

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इक वहुटड़ी साहुरे चली सयालीं आई हीर तों लैन सुनेहयां नूं
तेरे पेकड़े चली हां एह गलों खोलह किसयां जेहयां केहयां नूं
तेरा सहुरयां तुघ प्यार केहा ताजे करे सुनहेड़ा बेहयां नूं
तेरा गभरू नाल प्यार केहा बहुछियां दसदियां ने असां जेहयां नूं
हीर आखदी ओस दे गल एवें वैर रेशमां नाल ज्यों लेहयां नूं
वारस गाफ<ref>गाली</ref> ते अलफ ते लाम बोले<ref>गाली-गलौच</ref> होर की आखां एहयां तेहयां नूं

शब्दार्थ
<references/>