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232 / हीर / वारिस शाह

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तेरे वासते बहुत उदास हां मैं रब्बा मेल तूं चिरीं विछुंनियां नूं
हथी मापयां ने दिती जालमां नूं लगा लूण कलेजयां भुंनयां नूं
मौत अते संजोग ना टले मूले कौन मोड़दा साहयां पुनयां नूं

शब्दार्थ
<references/>