भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
239 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:21, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुझी इशक दी अग नूं वा लगी समां आया ए शौक जगावने दा
बाल नाथ दे टिले दा राह फड़या मता जागया कन्न पड़ावनेदा
पटे वाल मलाइयां दे नालपाले वकतआया सू रगड़ मुनावने दा
जरम करम तयाग के ठान बैठा किसे जोगी दे हथ वकावने दा
बुंदे सोने दे लाह के चाअ चढ़या कन्न पाड़ के मुंदरां पावने दा
किसे ऐसे गुरदेव दी टहल करीए वल सिखीए रन्न खिसकावने दा
वारस शाह मियां एहनां आशकां नूं फिकर जरा ना जिंद गुवावने दा
शब्दार्थ
<references/>