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249 / हीर / वारिस शाह

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तुसीं जोग दा पंथ बताओ मैंनूं शौक जागया हरफ<ref>अक्षर</ref> नगीनयां दे
एस जोग दे पंथ विच आ वड़या छपन ऐब सवाब कमीनयां दे
हिरस अग ते सबर दा पवे पानी जोग ठंड घते विच सीनयां दे
इक फकर ई रब्ब दे रहन साबत होर थिड़कदे अहल<ref>खज़ाने का मालिक</ref> खजीनयां दे
तेरे दर ते आन मुथाज होए असीं नौकर हां बाझ महीनयां दे
वारस हो फकीर मैं नगर मंगां छडां वायदे एहनां रोजीनयां<ref>वजीफे</ref> दे

शब्दार्थ
<references/>