Last modified on 3 अप्रैल 2017, at 17:26

253 / हीर / वारिस शाह

जोग करन सो मरन थीं होए असथिर जोग सिखीए सिखना आया ई
निहचा धार के गुरु दे सेव करिये एह भी जोगियां दा फरमाया ई
नाल सिदक यकीन दे बन्न तकवा धन्ने पथरों रब्ब नूं पाया ई
मैल दिल दी धो के साफ कीती तुरत गुरु ने रब्ब मिलाया ई
बचा सुनो इस विच कलबूत खाकी सचे रब्ब ने थां बनाया ई
वारस शाह मियां हमाओसत<ref>रब्ब ही रब्ब</ref> जापे सरब्ब मय भगवान नूं पाया ई

शब्दार्थ
<references/>