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25 अगस्त का मंज़र / राजेन्द्र गौतम

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सब बन्द मदरसे / जारी जलसे
गलियाँ युद्धों का मैदान।

अब कैसी होली / लाठी-गोली
भेंट मिली है जनता को
क्यों माँगे रोटी / क़िस्मत खोटी
गद्दी को बस जन ताको

थे ही कब अपने / सुख के सपने
पड़े रेत में लहूलुहान।

कल नन्हीं चिड़िया / भोली गुड़िया
भेंट चढ़ी विस्फोटों में
अब तेरा टुल्लू / उसका गुल्लू
आँके इतने नोटों में

क्यों भावुक होते / गुमसुम होते
ले लो यह है नक़द इनाम।

यह साँड बिफरता / आता चरता
फ़सलें भाईचारे की
कट शाख गिरेंगी / देह चिरेंगी
धार निकलती आरे की

कर क़त्ल नदी का / ध्येय सदी का
फैलाना बस रेगिस्तान।