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272 / हीर / वारिस शाह

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नाथ खोलह अखीं कहया रांझणे नूं बचा जाह तेराकम होया ई
फल आन लगा उस बूटड़े नूं जेहड़ा विच दरगाह दे बोया ई
हीर बखश दिती सचे रब्ब तैनूं मोती लाल दे नाल परोया ई
चढ़ दौड़के जित लै खेड़यां नूं बचा सौण<ref>सगून</ref> तैनूं भला होया ई
कमर कस उदासीयां बन्ह लइआं जोगी तुरत तयार ही होया ई
खुशी हो के करो विदा मैंनूं हथ बनह के आन खलोया ई
वारस शाह जां नाथ ने हुकम कीता टिलयों उतरदा पतरा होया ई

शब्दार्थ
<references/>