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375 / हीर / वारिस शाह

भला दस खां जोगिया! यार साडा हुण केहड़ी तरफ नूं उठ गया
वेखां आप हुण केहड़ी तरफ फिरदा अते मुझ गरीब नूं कुठ<ref>मार गया</ref> गया
रूठे आदमी घरां विच आन मिलदे गल समझ जा बधड़ी मुठ<ref>कमज़ोर हो जाना</ref> गया
घरां विच पैंदा गुनां सजनां दा यार होर नाहीं किसे गुठ गया
घर यार ते ढूंढ़दी फिरे बाहर किते महल ना माड़ियां उठ गया
सानूं चैन आराम ते सबर नाहीं सोहणा यार जदोकणा रूठ गया

शब्दार्थ
<references/>