भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"91 से 100 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=91 …)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatPad}}
[[Category:लम्बी रचना]]
+
 
{{KKPageNavigation
 
{{KKPageNavigation
|पीछे=91 से 100 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 2
+
|पीछे=विनयावली / तुलसीदास / 91 से 100 तक / पृष्ठ 2
|आगे=पद 91 से 100 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4
+
|आगे=विनयावली / तुलसीदास / पद 91 से 100 तक / पृष्ठ 4
 
|सारणी=पद 91 से 100 तक / तुलसीदास
 
|सारणी=पद 91 से 100 तक / तुलसीदास
 
}}
 
}}

08:41, 17 जून 2012 का अवतरण

पद 95 से 96 तक

(95)

तऊ न मेरे अघ-अवगुन गनिहैं।
जौ जमराज काज सब परिहरि, इहै ख्याल उर अनिहैं।1।

चलिहैं छूटि पुंज पापिनके, असमंजस जिय जनिहैं।
देखि खलल अधिकार प्रभूसों (मेरी) भूरि भलाई भनिहैं।2।

 हँसि करिहैं परतीति भगतकी, भगत-सिरोमनि मनिहैं।
ज्यों त्यों तुलसिदास कोसलपति अपनायेहि पर बनिहैं।3।

 (96)

जौ पै जिय धरिहौं अवगुन जनके।
तौ क्यों कटत सुकृत -नखते मो पैं, बिपुल बृंद अघ-बनके।1।

कहिहै कौन कलुष मेरे कृत, करम बचन अरू मनके।
हारहिं अमित सेष सारद श्रुति, गिनत एक एक छनके।2।

जो चित चढैं़ नाम-महिमा निज, गुनगन पावक पनके।
तो तुलसिहिं तारिहौं बिप्र ज्यों दसन तोरि जमगनके।3।