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पाँच सितारा होटल में नए मौसम के फूल

उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में 26 नवंबर 1952 को जन्मे शायर मुनव्वर अली राना की शायरी की 16 और गद्य की 1 यानी अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । हाल ही में दिव्यांशु प्रकाशन. लखनऊ से उनकी शायरी की नई पुस्तक प्राकाशित हुई है – ‘नए मौसम के फूल’ । मुम्बई के पाँच सितारा होटल सहारा स्टार में शनिवार 21 मार्च को आयोजित एक भव्य समारोह में सहारा इंडिया परिवार के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर श्री ओ.पी.श्रीवास्तव ने इस पुस्तक का विमोचन किया । श्रीवास्तवजी ने इस अवसर पर साहित्य, सिनेमा, मीडिया और व्यवसाय जगत की जानी मानी हस्तियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिस तरह स्लमडॉग मिलेनियर के जमाल के लिए ज़िंदगी ही सबसे बड़ी पाठशाला है, उसी तरह मुनव्वर राना की शायरी का ताना-बाना भी ज़िंदगी के रंग बिरंगे रेशों, सच्चाइयों और खट्टे-मीठे अनुभवों से बुना गया है । श्रीवास्तवजी ने उनके कुछ शेर भी कोट किए-

बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है

बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है

कार्यक्रम के संचालक कवि देवमणि पाण्डेय ने मुनव्वर राना का परिचय कराते हुए कहा कि उनकी शायरी में रिश्तों की एक ऐसी सुगंध है जो हर उम्र और हर वर्ग के आदमी के दिलो दिमाग पर छा जाती है । पाण्डेयजी ने आगे कहा कि शायरी का पारम्परिक अर्थ है औरत से बातचीत । अधिकतर शायरों ने ‘औरत’ को सिर्फ़ महबूबा समझा । मगर मुनव्वर राना ने औरत को औरत समझा । औरत जो बहन, बेटी और माँ होने के साथ साथ शरीके-हयात भी है । उनकी शायरी में रिश्तों के ये सभी रंग एक साथ मिलकर ज़िंदगी का इंद्रधनुष बनाते हैं । कार्यक्रम के संयोजक एवं स्टार न्यूज के वरिष्ठ सम्पादक उपेन्द्र राय ने रानाजी का स्वागत करते हुए कहा कि वे हिंदुस्तान के ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर हैं जिसने ‘माँ’ की शख़्सियत को ऐसी बुलंदी दी है जो पूरी दुनिया में बेमिसाल है –

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई

मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

मंच पर लगे बैनर पर भी ‘माँ’ इस तरह मौजूद थी-

इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है

माँ बहुत गुस्से में हो तो रो देती है

दरअसल पत्रकार उपेन्द्र राय ने अपनी जीवन संगिनी डॉ.रचना के जन्मदिन पर उनको 'शायरी की एक शाम' का नायाब तोहफा दिया था । उनकी तीन वर्षीय बेटी ऊर्जा अक्षरा ने जन्मदिन का केट काटकर 'माँ' लफ़्ज़ को सार्थकता प्रदान की । शायर मुनव्वर राना की रचनाधर्मिता और सरोकारों पर रोशनी डालते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने उन्हें काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया –

न मैं कंघी बनाता हूं , न मैं चोटी बनाता हूं

ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूं

मुनव्वर राना ने काव्यपाठ की शुरुआत माँ से ही की-

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता

मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है

अपने डेढ़ घंटे के काव्यपाठ में राना ने उस आदमी की भी ख़बर ली जो ज़िंदगी की दौड़ में सबसे पीछे है-

सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर

मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते

रानाजी के अनुरोध पर संचालक देवमणि पाण्डेय ने भी कुछ ग़ज़लें सुनाईं । कार्यक्रम के अंत में हास्यसम्राट राजू श्रीवास्तव और सुनीलपाल ने अपनी रोचक प्रस्तुतियों से माहौल को ठहाकों से सराबोर कर दिया ।


साहित्य अकादमी,नई दिल्ली के सभागार में हाइकु दिवस समारोह

दुनिया में सबसे अधिक चर्चित एवं आकार की दृष्टि से सर्वाधिक छोटी मात्र १७ अक्षर की कविता 'हाइकु' पर केन्द्रित 'हाइकु दिवस` का आयोजन साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सभागार में ०४ दिसम्बर को किया गया। रवीन्द्र नाथ टैगोर और उनके बाद अज्ञेय जी ने अपनी जापान यात्राओं से वापस आते समय जापानी हाइकु कविताओं से प्रभावित होकर उनके अनुवाद किए जिनके माध्यम से भारतीय हिन्दी पाठक 'हाइकु` के नाम से परिचित हुए। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में जापानी भाषा के पहले प्रोफेसर डॉ० सत्यभूषण वर्मा(०४-१२-१९३२ ....... १३-01-२००५) ने जापानी हाइकु कविताओं का सीधा हिन्दी में अनुवाद करके भारत में उनका प्रचार-प्रसार किया। इससे पूर्व हाइकु कविताओं के जो अनुवाद आ रहे थे वे अंगे्रजी के माध्यम से हिन्दी में आ रहे थे प्रो० वर्मा ने जापानी हाइकु से सीधा हिन्दी अनुवाद करके भारत मे उसका प्रचार-प्रसार किया। परिणामत: आज भारत में हिन्दी हाइकु कविता लोकप्रिय होती जा रही है। अब तक लगभग ४०० से अधिक हिन्दी हाइकु कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और निरन्तर प्रकाशित हो है। प्रो० सत्यभूषण वर्मा के जन्म दिन ४ दिसम्बर कैं हाइकु दिवस के रूप मे मनाने का प्रारम्भ हाइकु कविता की पत्रिका `हाइकु दर्पण' ने २००६ से गाजियाबाद से किया। हाइकु दर्पण के संपादक डॉ० जगदीश व्योम, कमलेश भट्ट कमल एवं डॉ० अंजली देवधर द्वारा हिन्दी हाइकु कविता की गुणवत्ता में सुधार हेतु निरन्तर प्रयास किए जा रहे है। इसी श्रृंखला में यह आयोजन किया गया। हाइकु दिवस समारोह के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० प्रभाकर श्रोत्रिय ने दीप प्रज्ज्वलन कर समारोह का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि श्री विजय किशोर मानव (संपादक कादम्बिनी) ने कहा कि हाइकु कविता मन की अतल गहराईयों कैं प्रभावित कर सके ऐसा प्रयास करना चाहिए। विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी के केन्द्र निदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेई ने कहा कि हाइकु मन की अनुभूति की कम शब्दों में व्यक्त करने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अपनी आकाशवाणी की गोष्ठियों में हाइकु पाठ के लिए भी हाइकुकारों कैं आमंत्रित किए जाने की योजना विषयक जानकारी दी तथा डोगंरी भाषा मे लिखी जा रही हाइकु कविताओं की चर्चा की। विशिष्ट अतिथि डॉ० अंजली देवधर ने अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में लिखे जाने वाली हाइकु कविताओं की चर्चा करते हुए दुनिया के तमाम देशों में आयोजित हाइकु संगोष्ठियों में भारतीय हाइकु व हिन्दी हाइकु की उपस्थिति व मान्यता विषयक जानकारी देते हुए बताया कि बंगलोर में आयोजित अंग्रेजी भाषा के विश्व हाइकु सम्मेलन में पहली बार हाइकु दर्पण के संपादक को हिन्दी में हाइकु की स्थिति पर शोधपत्र प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि शब्द जैसे-जैसे कम होते जाते है कविता सघन होकर और प्रभावशाली होती जाती है। हाइकु में कम शब्द होते है वहाँ किसी निरर्थक शब्द या अक्षर की गुंजाइश नहीं है इसीलिए एक अच्छा हाइकु बहुत प्रभावशाली होता है। हाइकु दर्पण पत्रिका के संपादक एवं हाइकु दिवस समारोह के संयोजक डॉ० जगदीश व्योम ने विश्व स्तर पर हिन्दी हाइकु की स्थिति की जानकारी दी। इण्टरनेट पर हिन्दी हाइकु के विषय में बताते हुए डा० व्योम ने कहा कि हिन्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय वेबसाइट- अनुभूति एवं अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन (यू.ए.ई.) ने हाइकु माह जैसे आयोजन किया तथा हाइकु की कार्यशाला आयोजित की और प्रतिदिन एक चुनिन्दा हाइकु चित्र सहित वेबसाइट पर प्रकाशित किया जिन्हें हजारों वेब पाठकों ने प्रतिदिन पढ़ा और सराहा। हिन्दी की अनेक वेबसाइट्स हैं जिन पर हाइकु कविताएँ निरंतर प्रकाशित की जा रही है? कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रसिद्ध हाइकुकार एवं साहित्यकार कमलेशभट्ट कमल ने हाइकु लेखन पर समग्र दृष्टि डालते हुए बताया कि आज के व्यस्ततम समय में मन के अनुभावों को व्यक्त करने के लिए अधिक समय किसी के पास नहीं है ऐसे में हाइकु कविता सर्वाधिक उपयोगी तथा समसामयिक है। प्रो० वर्मा के साथ हमेशा से जुड़े रहे कमलेश भट्ट कमल ने हिन्दी हाइकु यात्रा विषयक विस्तृत जानकारी दी तथा हाइकु १९८९, हाइकु १९९९ जैसे ऐतिहासिक संकलनों के संपादन के बाद प्रस्तावित हाइकु २००९ के संपादन विषयक जानकारी देते हुए हाइकुकारों से हाइकु भेजने हेतु कहा। ओमप्रकाश चतुर्वेदी पराग ने हाइकु कविता को ५-७-५ अक्षरक्रम में मात्र १७ अक्षर तक सीमित रखने विषयक अनुशासन पर प्रश्न उठाया। इस अवसर पर प्रो० सत्यभूण वर्मा की जीवन संगिनी श्रीमती सुरक्षा वर्मा की गरिमामय उपस्थित समारोह का आकर्षण रही। डा० अंजली देवधर को विभिन्न देशों व भाषाओं में हिन्दी हाइकु का प्रचार-प्रसार करने तथा श्रीमती सुरक्षा वर्मा को प्रो० सत्यभूषण वर्मा द्वारा छोडी गई हाइकु यात्रा को निरन्तर आगे बढाने की दिशा में सतत सहयोग देने के लिए समारोह के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय तथा मुख्यअतिथि कादम्बिनी के संपादक विजय किशोर मानव द्वारा शाल उढाकर सम्मानित किया गया। समारोह में हाइकुकारों ने हाइकु कविताओं का पाठ कर जनसमूह को प्रभावित किया। हाइकु पाठ करने वालों में सर्वश्री- डॉ० कुअँर बेचैन, डॉ० सरिता शर्मा, पवन जैन(लखनऊ), अरविन्द कुमार, लक्ष्मीशंकर वाजपेई, ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग, कमलेश भट्ट कमल, डॉ० जगदीश व्योम, सुजाता शिवेन(उड़िया कवयित्री), ममता किरण वाजपेई, प्रदीप गर्ग आदि प्रमुख थे। हाइकु दिवस समारोह में सुप्रसिद्ध साहित्यकार से.रा.यात्री, सुप्रसिद्ध गजलकार ज्ञान प्रकाश विवेक, इंडिया न्यूज पत्रिका के सहायक संपादक अशोक मिश्र, बी. एल. गौड़, साहित्यकार डॉ० अरुण प्रकाश ढौंढ़ियाल, हरेराम समीप, अमरनाथ अमर, डॉ० तारा गुप्ता, श्रीमती ज्योति श्रोत्रिय, ब्रजमोहन मुदगल, एस.एस.मावई, श्रीमती मावई, श्रीमती अलका यादव, शिवशंकर सिंह, सुधीर, प्रत्यूष, ममता किरन, मृत्युंजय साधक, नीरजा चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संयोजक डॉ० जगदीश व्योम ने किया।

अमेरिका में हिन्दी महोत्सव की धूम

न्यू जर्सी (यू. एस. ए.)

हिन्दी यू.एस.ए. द्वारा अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के सोमरसेट नगर में फ्रेंक्लिन हाई स्कूल के सभागार में दो दिवसीय सप्तम हिन्दी महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। आयोजन के पहले दिन लगभग 650 बालकों ने हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। 1200 क्षमता का फ्रेंक्लिन हाई स्कूल का सभागार जन समुदाय से भरा हुआ था। नृत्य, संगीत, अंताक्षरी, कविता पाठ, वाक्य में प्रयोग, हनुमान चालीसा तथा रामायण चोपाई गायन इस प्रकार की अन्य-अन्य प्रतियोगिताएँ देखकर दर्शक दाँतों तले उंगली दबाने को विवश थे। हिन्दी यू.एस.ए. संस्था अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के अलावा अमेरिका के अन्य प्रांतों तथा कनाडा में भी हिन्दी के लगभग 25 विद्यालय चला रही है। इन विद्यालयों में लगभग 1200 बालक – बालिकाएँ साप्ताहिक कक्षा में आकर हिन्दी सीखते हैं और वर्ष में एक बार आयोजित हिन्दी महोत्सव में आकर अपनी प्रतिभा का मंचन करते हैं। इन कक्षाओं की एक और विशेषता का उल्लेख करना ज़रूरी है कि इन कक्षाओं में दक्षिण भारतीय राज्यों के बालक-बालिका भी उत्साह से भाग लेते हैं। अभी तक समपन्न 6 हिन्दी महोत्सवों में भारत से बाबा रामदेव, श्रीमती किरण बेदी, श्री वेद प्रताप वैदिक, साध्वी ऋतम्भरा, श्री नितिश भारद्वाज और लाफ्टर चैम्पियन राजू श्रीवस्तव अतिथि के रूप में आ चुके हैं। इसी प्रकार भारत के हिन्दी लोकप्रिय कवि श्री अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबाद, माणिक वर्मा, ओम व्यास, गजेन्द्र सोलंकी काव्य पाठ कर चुके हैं।

लगभग 7 वर्ष पूर्व एक युवा दमपति देवेन्द्र- रचिता सिंह द्वारा आरंभ किया गया यह हिन्दी अभियान एक आन्दोलन का रूप लेता जा रहा है। हिन्दी महोत्सव में इस जन आन्दोलन का भव्य रूप का दर्शन किया जा सकता है। हिन्दी साहित्य के लगभग 15 स्टॉल लगाए गए थे। भारतीय व्यंजन उपलब्ध थे तथा दर्शक भी भारतीय वेशभूषा में समारोह में उपस्थित हुए थे। कुल मिलाकर एक रंग बिरंगे मेले का रूप इस हिन्दी के उत्सव ने ले लिया था। जितने लोग सभागार में उपस्थित थे उतने ही लोग बाहर मेले का आनन्द ले रहे थे।


मेले का दूसरा दिन विजेता बालकों को प्रवासी उद्योगपति श्री ब्रह्मरत्तन अग्रवाल और पूर्व एम्बेसेडर एट-लार्ज श्री भीष्म अग्निहोत्री द्वारा पुरस्कार वितरण से आरंभ हुआ। इस अनुष्ठान में लगभग 120 से अधिक हिन्दी के अध्यापक-अध्यापिकाएँ जुड़े हैं। इन सब का सम्मान किया गया। प्रसन्नता की बात है कि इन में से बहुत से अध्यापक-अध्यापिकाएँ दक्षिण भारतीय राज्यों से भी आते हैं। हिन्दी यू.एस.ए. संस्था की एक और विशेषता का उल्लेख करना जरूरी है कि इस संस्था में कोई पद नहीं है, सभी स्वयंसेवक के रूप में ही कार्य करते हैं। लगभग 50 स्वयंसेवक दिन-रात मेहनत कर के इस आयोजन को सफल करते हैं। स्वयंसेवकों की मेहनत का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सम्मान हेतु उनका नाम मंच से पुकारा गया, तो व्यवस्था में व्यस्त रहने के कारण, कोई भी स्वयंसेवक मंच पर उपस्थित ना हो पाया। इस अवसर पर श्री भूपेन्द्र मौर्य द्वारा सम्पादित “कर्मभूमि” नामक त्रैमासिक पत्रिका का लोकार्पण भी किया गया। हिन्दी यू. एस. ए. की यह ई-पत्रिका हिन्दी जगत में लोकप्रिय होती जा रही है।


इसके बाद आरंभ हुआ भारत से पधारे कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य, राजेश चेतन, और बाबा सत्यनारायण मौर्य द्वारा कवि सम्मेलन। राजेश चेतन के संचालन में लगभग 4 घण्टे तक यह कवि सम्मेलन चला। आदित्य जी की हास्य कविताओं को सुनकर सभागार ठहाकों से गूंज रहा था। हास्य के छन्द, बालक और परीक्षा तथा नोट देवता की आरती सुनाकर, आदित्य जी ने जनता को लोट-पोट कर दिया। हास्य व्यंग के साथ, ओज कविता के तेवर रखने वाले राजेश चेतन ने अपने लगभग 1 घंटे के काव्य पाठ में ‘राम बना रोम’ तथा ‘भारत और आतंकवाद’ जैसी कविताएँ सुनाकर, जनता की खूब वाह-वाह लूटी। विश्व प्रसिद्ध कवि कलाकर बाबा सत्यनारायण मौर्य ने हिन्दी महोत्सव की गरिमा अनुसार सबसे पहले राजेश चेतन की वनवासी राम कविता के साथ भगवान राम का चित्र बनाया। विश्व में सर्वाधिक तेज गति से चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध बाबा ने अपनी कविताओं के साथ-साथ चित्रकारी की भी गहरी छाप जनता पर छोड़ी। समस्त जनता ने खड़े होकर, बाबा मौर्य का आरती में सहयोग किया तथा हिन्दी को एक जन-आन्दोलन बनाने के संकल्प के साथ सातवां हिन्दी महोत्सव समपन्न हुआ। इस आयोजन में प्रूडेंशल बीमा कम्पनी के श्री जय पुरोहित, महावीर चुड़ासमा, और श्री सतीष करनधिकर का आर्थिक सहयोग रहा, उनके प्रति भी संस्था आभार प्रकट करती है।

उषा राजे सक्सेना के नए कहानी संग्रह का लोकार्पण

चर्चित कहानीकार उषा राजे सक्सेना के कहानी संग्रह 'वह रात और अन्य कहानियाँ' का लोकार्पण' लंदन स्थित नेहरू केंद्र में दिनांक शुक्रवार 30 मई 2008 को संपन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता, अचला शर्मा लेखिका, निदेशक बी.बी.सी वर्ल्ड सर्विस हिंदी लंदन ने किया। नेहरू केंद्र की निदेशक सुश्री मोनिका मोहता,आलोचक-समीक्षक गज़लकार श्री प्राण शर्मा, लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन, तथा भारत से आए पुस्तक के प्रकाशक श्री महेश भारद्वाज (सामायिक प्रकाशन) विशिष्ट अतिथि थे।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए नेहरू केंद्र की निदेशक, मोनिका मोहता ने सभी आगंतुक साहित्यकारों और श्रोताओ का स्वागत करते हुए बताया कि उषा राजे सक्सेना ब्रिटेन की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं उनके कहानी संग्रह 'वह रात ओर अन्य कहानियाँ' पुस्तक का लोकार्पण समाहरोह आयोजित कर नेहरू सेन्टर गौरवान्वित है। कार्यक्रम की अध्यक्षा अचला शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि उषा राजे उन तमाम विषयों पर क़लम चलाने का माद्दा रखती हैं जिन पर आमतौर पर अंग्रेज़ी के लेखक अपना अधिकार मानते है। ऐसे पात्रों के मन को समझना और उनकी कहानी लिखना जोखिम का काम है, उषा राजे यह जोखिम बखूबी उठाती हैं। अचला शर्मा ने आगे कहा कि उषा राजे की एक विशेषता यह कि वह चुपचाप अपने लेखन कार्य में लगी रहती हैं ये कहनियाँ इस बात का सुबूत हैं कि उषा अपने परिवेश के प्रति सजग हैं. क्योंकि ये कहानियाँ कई खबरों की सुर्खियों की याद दिलाती हैं।

मुख्य वक्ता प्राण शर्मा ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा, उषा राजे की कहानियाँ' उनके ब्रिटेन के साक्षात अनुभवों को अभिव्यक्त करती हैं। ये कहानियाँ हिंदी साहित्य में तो शीर्ष स्थान बनाती ही हैं साथ अँग्रेज़ी कहानियों के समानांतर भी हैं। 'वह रात और अन्य कहानियाँ' में दुनिया के अनेक देशों के आप्रवासी पात्र अपनी-अपनी व्यक्तिगत एवं स्थानीय समस्याओं और मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ हमारे समक्ष आते हैं।

लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन ने उषा राजे की कहानियों को गहन अनुभूतियोंवाली वाली कहानियाँ बताया। उन्होंने कहा ये कहानियाँ मात्र भारतीय या पाश्चात्य ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों से आए प्रवासियों की कहानियाँ है। युट्टा ने बताया कि उन्होंने इन कहानियों का अंग्रेजी अनुबाद कर इन्हें विश्वव्यापी बनाने का प्रयास किया है।

प्रकाशक महेश भारद्वाज ने 'वह रात और अन्य कहानियाँ' को वैश्विक, यथार्थ पर आधारित पठनीय कहानियाँ बताया। उषा राजे ने अपने वक्तव्य में कहा वे अपनी लेखनी के माध्यम से मातृ भाषा के उन पाठकों तक पहुँचना चाहती हैं जिनकी पहुँच अँग्रेज़ी भाषा साहित्य तक नहीं है परंतु वे पाश्चात्य जीवन-पद्धति, जीवन-मूल्य, कार्य-संस्कृति, मानसिकता और प्रवासी जीवन आदि का फर्स्टहैंड पड़ताल चाहते हैं।

कार्यक्रम का संचालन राकेश दुबे, अताशे (हिंदी एवं संस्कृति) भारतीय उच्चायोग लंदन ने किया। कहानी-पाठ किशोरी प्रज्ञा 'सुरभि' सक्सेना ने बड़े ही प्रभावशाली और सरस ढंग से किया। नेहरूकेंद्र लंदन के तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम में ब्रिटेन के लगभग सभी गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे और सभागार श्रोताओं और अतिथियों से भरा हुआ था।

परिवेश सम्मान - 2007

साहित्यिक पत्रिका परिवेश द्वारा प्रतिवर्ष किसी रचनाकार को दिया जाने वाला चौदहवाँ परिवेश सम्मान वर्ष 2007 के लिए कवि-आलोचक शैलेंद्र चौहान को देने का निर्णय लिया गया है। परिवेश सम्मान की घोषणा करते हुए परिवेश के सम्पादक मूलचंद गौतम एवं महेश राही ने कहा कि हिन्दी में तमाम तरह के पुरस्कारों एवं सम्मानों के बीच इस सम्मान का अपना वैशिष्टय है। परिवेश के 53वें अंक में शैलेंद्र चौहान के साहित्यिक अवदान पर विशेष सामग्री केद्रिंत की जायेगी। 1957 में मध्यप्रदेश के खरगौन में जन्मे श्री शैलेंद्र चौहान को कविता विरासत के बजाय आत्मान्वेषण और आत्मभिव्यक्ति के संघर्ष के दौरान मिली है। निरन्तर सजग होते आत्मबोध ने उनकी रचनाशीलता को प्रखरता और सोद्देश्यता से संपन्न किया है। इसी कारण कविता उनके लिए संपूर्ण सामाजिकता और दायित्व की तलाश है। विचार, विवेक और बोध उनकी कविता के अतिरिक्त गुण हैं। जब कविता और कला आधुनिकता की होड़ में निरन्तर अमूर्त होती जा रही हो, ऐसे में शैलेंद्र चौहान समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के दु:ख तकलीफों को, उनके चेहरों पर पढ़ने की कोशिश करते हैं। शैलेन्द्र चौहान को दिया जाने वाला 2007 का परिवेश सम्मान इसी अनुभव और सजग मानवीय प्रतिबध्दता का सम्मान है।

वर्ष 2007 का 'केदार सम्मान' अनामिका को

'केदार शोध पीठ न्यास' बान्दा द्वारा सन् १९९६ से प्रति वर्ष प्रतिष्ठित प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में दिए जाने वाले साहित्यिक 'केदार-सम्मान' की घोषणा कर दी गई है। वर्ष २००७ का केदार सम्मान कवयित्री सुश्री अनामिका को उनके काव्य-संग्रह 'खुरदरी हथेलियाँ ' के लिए प्रदान किए जाने का निर्णय किया गया है। यह सम्मान प्रतिवर्ष ऐसी प्रतिभाओं को दिया जाता है जिन्होंने केदार की काव्यधारा को आगे बढ़ाने में अपनी रचनाशीलता द्वारा कोई अवदान दिया हो।

फिर खुलेगा 300 साल पुराना पुस्तकालय

औरंगाबाद। औरंगाबाद में ऐतिहासिक वाटर मिल में 40 साल के अंतराल के बाद 300 साल पुराना प्राचीन पुस्तकालय फिर से खोला जा रहा है। इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों और दुर्लभ पुस्तकों का अनूठा संग्रह है जिसमें मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर द्वारा लिखी गई पवित्र कुरान भी शामिल है। यह पुस्तकालय 18वीं शताब्दी का है जो एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है। महाराष्ट्र वक़्फ़ बोर्ड के प्रयासों से यह फिर से खुलने जा रहा है।

हिन्दी में तैयार होंगे 25 विषयों पर विश्वकोष

देश का इकलौता हिन्दी विश्वविद्यालय 25 विषयों के विश्वकोष हिन्दी में तैयार करेगा। इसमें से एक विषय तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोष तैयार किया जा चुका है और संपादन पूर्ण होते ही इसे जारी कर दिया जाएगा। विश्वविद्यालय प्रत्येक वर्ष कम से कम तीन विश्वकोष तैयार करेगा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. जी. गोपीनाथन के अनुसार सभी 25 विश्वकोष हिन्दी सूचना विश्वकोष परियोजना के अंतर्गत तैयार होंगे। जिन्हे बाद में एकीकृत किया जाएगा। इनमें तुलनात्मक साहित्य विश्वकोष सहित विश्वभाषा हिन्दी विश्वकोष, हिन्दी अनुवाद, जीव विज्ञान, कृषि, अंतरिक्ष, प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, विधि एवं मानवाधिकार, भाषा विज्ञान, संचार-माध्यम, नाट्शास्त्र, ललितकला आदि पर विश्वकोष होंगे। इस परियोजना को राष्ट्रीय विश्वकोष संस्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। परियोजना से विभिन्न खानानुशासनों में अनेकानेक विषयों पर अधिकतम प्रामाणिक सूचनाओं का विश्वकोष तैयार किया जा सकेगा। गोपीनाथन के अनुसार हिन्दी सूचना विश्वकोष परियोजना विश्वकोष नाम से एक शोध-पत्र का भी प्रकाशन करेगा। इसके अंतर्गत अंक-विशेष के लिए ख्यातनाम विद्वानों से शोध-पत्र लिए जाएंगे। विश्वकोष परियोजना के अलावा विश्व हिन्दी पोर्टल और विश्व हिन्दी संग्रहालय व अभिलेखागार की योजना भी लागू की जानी है। विश्व हिन्दी पोर्टल पर हिन्दी से जुड़ी विश्वभर की गतिविधियां शामिल की जाएगी।

विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद"

विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद" जिसका हिन्दी अनुवाद कथाकार-उपन्यासकार रूपसिंह चंदेल ने किया है और जो संवाद प्रकाशन, मेरठ से पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है, का धारावाहिक प्रकाशन ब्लाग पत्रिका "साहित्य सृजन" के फरवरी 2008 अंक से प्रारंभ होने जा रहा है। "साहित्य सृजन" का फरवरी अंक 28 फरवरी को जारी होगा। हिन्दी के पाठक अब http://www.sahityasrijan.blogspot.com/ पर 28 फरवरी से इस उपन्यास का धारावाहिक आनन्द ले सकेंगे।

अमरकांत समेत 24 लेखकों को अकादमी पुरस्कार

नई दिल्ली। हिंदी के वयोवृद्ध लेखक एवं स्वंतत्रता सेनानी अमरकांत, उर्दू के आलोचक वहाब अशरफी और मैथिली के लेखक प्रदीप बिहारी समेत 24 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को बुधवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

दरअसल अमरकांत को उनकी अनुपस्थिति में यह पुरस्कार प्रदान किया गया। वह अस्वस्थ होने के कारण समारोह में भाग लेने के लिए नहीं आ सके। बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय ने एक गरिमामय समारोह में इन लेखकों को वर्ष 2007 के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।

पुरस्कार में प्रत्येक लेखक को 50-50 हजार रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीक चिह्न और शॉल भेंट किया गया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में अमरकांत को उनके चर्चित उपन्यास इन्हीं हथियारों से के लिए यह पुरस्कार दिया गया जो 1942 के भारत छोडो आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित है।

इस बार बिहार के दो लेखकों सर्वश्री वहाब अशरफी और प्रदीप बिहारी को अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उडिया लेखक दीपक मिश्र और तेलुगु लेखक गाडियाराम रामकृष्ण शर्मा को मरणोपरांत यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

शेष पुरस्कृत लेखक इस प्रकार है: हरिदत्त शर्मा संस्कृत, कुंदनमाली राजस्थानी, रतनलाल शांत कश्मीरी, राजेन्द्र शुक्ल गुजराती, मालती राव अंग्रेजी, वासुदेव निर्मल सिंधी, लक्ष्मण श्रीमल नेपाली, गो मा पवार मराठी, ज्ञान सिंह मगोच डोगरी, अनिल कुमार ब्रह्म बोडो, समरेन्द्र सेनगुप्त बांग्ला, पुरवी बरमुदै असमिया, कु. वीर भ्रदप्पा कन्नड, देवीदास रा. कदम कोंकणी, जसवंत दीद पंजाबी, खेरवाल सोरेन संथाली, नील पट्टयनाभन तमिल, ए. सेतुमाधवन सेतु मलयालम और बी एम माइस्नाम्बा मणिपुरी। समारोह की मुख्य अतिथि राज्यसभा की मनोनीत सदस्य एवं प्रख्यात संस्कृति कर्मी कपिला वात्स्यायन थी। समारोह की अध्यक्षता नारंग ने की।