भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँजुरी भर अँगड़ाई / अवनीश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 7 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिरज रहा है धूप सलोनी
सिरहाने पर सूरज
भोर झरोखे पर ले आई
अँजुरी भर अँगड़ाई

दूर क्षितिज पर टहल रहे हैं
बादल के मृगछौने
श्याम-सलोने पर्वत जैसे
कुछ हैं बौने-बौने
मौसम के हरकारे बनकर
आये वंशी-मादल
धुनें,राग,लय,ताल समेटे
मदमाती पुरवाई

झाँक रहीं किरणें कनखी से
इच्छाएँ मधुवन की
काजल ओढ़े नयन पढ़ रहे
परिभाषाएं मन की
नई गुदगुदी उठकर कब से
पोर-पोर तक पहुँची
खिली मञ्जरी फुनगी चहकी
कली-कली इँगुराई

नेहनदी ने गीत सुनाये
कल-कल सम्बन्धों के
पृष्ठ खुले पुलिनों पर आकर
हस्तलिखित ग्रन्थों के
सतहों पर मौसम की बेटी
करती है अठखेली
झुके पेड़ सब नाप रहे हैं
पानी की गहराई