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अंकों का व्यवहार / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'

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एक दो तीन चार
अच्छा करना तुम व्यवहार।
पाँच छह सात आठ
पाओगे तुम सबका प्यार।
नौ के बाद दस है
अब गिनती बस है।