भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका माय नें सिखैने छै / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 24 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंगिका माय नें सिखैने छै
जन्महै सें सभैं सिखैने छै

अंगिका माय आ हिन्दी मौसी
माय छोड़ी मौसी अपनैने छै

अंग देश के गोरव छिपल छै
वेद में भी नाम लिखैने छै

अंगिका केॅ समरिध साहित छै
सब विधा में पुस्तक रचैने छै

अंगिका अंग देश के भाषा
यें सब दिन सम्मान पैने छै

‘राम’ कहै सुनो हो अंगवासी
कैन्हें लोग मान घटैने छै।