भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका रामायण / छठा सर्ग / भाग 3 / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बालक अबोध युद्ध से भी अनभिज्ञ राम
भला ऊ कपट युद्ध कोन विधि लड़ता।
कोन-कोन निशिचर कतेक-कतेक वीर
बिन अनुभव राम युद्ध केना करता।
राम संग-संग एक अक्षोहिनी सेना लेॅ जा
वन में भी राम के सुरक्षा जौने करता।
प्राण के समान छिक हमरोॅ पियारोॅ राम
प्राणहीन होत तन राम जी निकलता॥21॥

दोहा -

राम लुभौना फूल सन, अति कोमल सुकमार।
निशिचर के उतपात से, कैसे पैता पार॥2॥

कोन निशिचर छिक, आरो कत्तेॅ बलशाली
केकरा बलें ऊ उतपात करि रहलै?
कोन विधि बली निशिचर के विनास होत
जोने संत जन पर घात करि रहलै!
कहलन विश्वामित्र सुनौ आसुरी चरित्र
जौने उतपात दिन-रात करि रहलै।
रावण नामोॅ के एक बड़ी उतपाति वीर
धरम के टारी जौने कात करि रहलै॥22॥

ओकरे पोसल छिक मारिच-सुबाहु दोनों
दोनों आवी यज्ञ-थल, यज्ञ नासी जाय छै।
रावण के डर से डरल राजा दशरथ
आरो हुन्हीं अपना के अक्षम बताय छै।
रावण के संग न लड़निहार जगत में
जौने नाम सुनी देवगण डरि जाय छै।
ओकरा से केना केॅ लड़त ई किशो राम
राजा दशरथ के ई समझे न आय छै॥23॥

सुन्द-उपसुन्द सुत मारिच-सुबाहु दोनों
लागै दोनों जेना जमराज के समान छै।
तेकरा आगू में ई किशोर राम लछमण
जिनका न युद्ध कला के रोॅ कोनो ज्ञान छै।
हिम्मत करि केॅ नृप अपने तैयार भेल
जेकरा से लड़ना नेॅ तनियों आसान छै।
नृप के रोॅ बात से क्रोधित भेल विश्वामित्र
जिनकर क्रोध बल आगिन समान छै॥24॥

पुत्र मोह देखि विश्वामित्र जी कुपित भेल
कहलन, हे नरेश एक बात जानि लेॅ।
वचन के तोरना धरम के विरूद्ध छिक
तोहें सत्यनिष्ठ रघुवंशी छिकेॅ जानि लेॅ।
हमरा कि? हम फेरो राम अवतारी लेव
तप बलें ब्रह्म के उतारि लेब जानि लेॅ।
पुत्र राम संग तोहें राज में सुखित रहोॅ
अपना लेॅ एकरा अमंगल ही मानि लेॅ॥25॥

कौशिक कुपित भेल, देवता दहलि गेल
अवध नरेश के वशिष्ट समझैलका।
सत्य के रोॅ पालन ही राज के धरम छिक
कुल के रोॅ होत अपयश ई बतैलका।
घोषणा करी केॅ जौने नृप इनकार करै
एकरा वशिष्ट मुनि अनीति गिनैलका।
जौने राजा अपने ही घोषणा विरूद्ध चलै
लोग आहनोॅ के सच भी न पतियैलका॥26॥

सोरठा -

ऋषि कौशिक के क्रोध, देख सहमलै लोग सब।
भेल प्रलय के बोध, शाप उगलतै आब जानु॥7॥

राम के सुरक्षा के दायित्व छै कौशिक पर
राम के असुर एक बाल न बिगारतै।
धरम के मूर्ति छिक अपने कौशिक मुनि
युद्ध कला में निपुण, सब वार टारतै।
अपरमपार गुण, तप के भंडार ऋषि
एक वाण में ही कोटि असुर संहारतै।
हिनका सानिध्य में सुरक्षित छै राम सदा
हिनका समक्ष काल खुद आवी हारतै॥27॥

ऋषि विश्वामित्र छिक तीनों काल जानै वाला
तप बलें विकट के सुगम बनाय छै।
हिनकरा रंग राम गेने सब शुभ होत
एकरा में हमरा न संसय बुझाय छै।
निशिचर लेली ऋषि खुद छै सामर्थवान
योग्य शिष्य के तलाश में ऋषि बुझाय छै।
जहाँ कि उरेली सकेॅ कौशिक समस्त ज्ञान
जेकरा कि जोग एक राम ही बुझाय छै॥28॥

प्रजापति कृशाश्व प्रकटलन दिव्य अस्त्र
जौने अस्त्र हुन्हीं विश्वामित्र के थम्हैलका।
प्रजापति दक्ष के रोॅ दू-टा गुणवंती धिया
‘जया’ ‘सुप्रभा’ अनेक शस्त्र निरमैलका।
सब छै कौशिक मुनि पास में अदृश्य रूप
हिनकोॅ वलोॅ के पार देवतो न पैलका।
तप के प्रभाव वलें वली विश्वामित्र ऋषि
अस्त्र आरो शस्त्र ढेरी सिनी निरमैल का॥29॥

सुनि कुलगुरु के बचन राजा दशरथ
राम लक्षमण दोनों पुत्र के बोलैलका।
आवी कुलगुरु तब स्वस्तिक बचन कहि
राम लक्षमण के कौशिक के थम्हैलका।
माँगेॅ गेला माता से आदेश जब रामचन्द्र
आवि क वशिष्ट जी औचित्य समझैलका।
राम लक्षमण के विलोकि क कौशिक संग
देवगण अंबर से फूल वरसैलका॥30॥