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अंगिका रामायण / तेसरोॅ सर्ग / भाग 9 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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कहलन शिव जी कि सुनोॅ गिरिनन्दनी हे
एक अवतार कथा आरो हम गाय छी।
मनु आरो सतरूपा दोनो से मनुष्य वंश
केना विस्तार भेल से कथा सुनाय छी।
स्वयंभु मनु के पुत्र प्रतापी उत्तानपाद
आरो प्रियव्रत सुकुमार के गिनाय छी।
मनु के रोॅ एक सुकुमारी धिया वेदहुति
उनकर कथा सनछेप में सुनाय छी॥81॥

प्रतापी उत्तानपाद के धरम-पतनी में
दू-टा नाम सुनीति-सुरूचि के गिनाय छी।
सुनीति के पुत्र भेल धु्रव जी हरि भगत
सुनीति के फल केना ध्रुव छै बताय छी।
आरो सुरूचि के पुत्र उत्तम कुमार भेल
सुरूचि के फल हम उत्तम बताय छी।
भनत विजेता सदा सुनीति के संग रहोॅ
सुरूचि के फल धु्रव-अटल न पाय छी॥82॥

राजा स्वयंभु मनु के छोटा बेटा प्रियव्रत
बालपन में ही जे संन्यास रूप धैलकै।
देलकन ब्रह्मा जी गृहस्त धर्म के रोॅ ज्ञान
तब मालिनी के संग व्याह हुन्हीं कैलकै।
पुत्र हेतु यज्ञ भेल; फल में मिरित पुत्र
जौने फल दम्पति के बिचलित कैलकै।
उनकर हित में प्रकट भेलि छठि मैया
जौने मृत बालक के छन में जिलैलकै॥83॥

सवैया -

भेल छठी सगरो जग पूजित
लोग सदा छठ के यश गावै।
बालक जन्म के ठीक छठा दिन
पूजि छठि सब दोष नसावै।
भाग लिखै छठि बालक के
हरि संकट-शेषेॅ निरोग बनावै।
बालक के हित चाहनिहार
उलीच अशीष उछाह मनावै॥31॥

स्वयंभु मनु के सुकुमारी धिया वेदहुति
ऋषि करदम से जेकर व्याह कैलका।
तिनकर पुत्र जग बिदित कपिल मुनि
जगत में जौने शांख्य-शास्त्र निरमैलका।
चौथापन मंे प्रवेश कैलका स्वयंभु मनु
वान प्रस्थ धरम सहजें अपनैलका।
तीरथ भ्रमण करि; हरि सुमिरन करि
रूप दरसन करि अतमा जुरैलका॥84॥

दोहा -

मोह न घर परिवार के; नै विशेष कुछ चाह।
मन रमलोॅ छै राम में; हियमें परम उछाह॥13॥

सब से प्रथम ऐला तीरथ नैमिसारण्य
तीरथ के फल संत दरसन कैलका।
घुमि-घुमि सुनलन वेद अेॅ पुराण कथा
घुमि-घुमि चारो धाम तीरथ नहैलका।
द्वादश आखर मंत्र चित्त धरि; तप करि
वासुदेव चरण कमल अपनैलका।
अन-जल वारि नृप, फल के अहार धरि
कामना बिसारी घनघोर तप कैलका॥85॥

तप-थल बेठी मनु आरो सतरूपा दोनो
द्वादश आखर मंत्र चित सें भजलका।
सीत आरू ताप सही, वारिस बतास सही
सब उतपात सही तप न तजलका।
बार-बार ब्रह्मा-विष्णु आरो महादेव ऐला
माँगु-माँगु-माँगु वर कही क जगैलका।
मनु महाराज परब्रह्म के दरस चाहै
कोनो वरदान हुन्हीं चित में न धैलका॥86॥

निसकाम भगति के मन में धरि क दोनों
सब सुख वारि घनघोर तप कैलका।
तेईस सहस्त्र सम्वत तक दोनों प्राणी
ध्यान धरि माता कुण्डलिनी के जगैलका।
अगुण अखण्ड जौने अनादि अनन्त जौने
जौने ब्रह्मा-हरि-शिव के भी निरमैलका।
जगत में जिनकर यश चारो वेद गावै
दोनो प्राणी उनकर दरसन पैलका॥87॥

कान में परल जब अमृत समान ध्वनि
माँगु-माँगु-माँगु वर सुनी मनु जगलै।
शबद सुनैतें तब प्रभुल्लित मन भेल
ताहि फल साधना सफल भेल लगलै।
दिव्य ज्योति परल कि तन निरमल भेल
अखने भवन से फिरल सन लगलै।
मनु महाराज असतुती करेॅ लागलाथ
तप के प्रभाव देखि तीनो ताप भगलै॥88॥

जिनकर स्वरूप महादेव के चित्त बसै
जिनकर नाम सब संत सिनी गाय छै।
जिनकर रूप काग-भुसुण्डी के हिय बसै
अगुन-सगुन वेद जिनका बताय छै।
बस वहेॅ रूप आवी सामने में ठार भेल
जौने रूप सब ऋषि-मुनि के लुभाय छै।
मनु महाराज के रोॅ माथ पर हाथ धरि
करूणा निधान मनेमन मुसकाय छै॥89॥

दोहा -

हरि तब भेल प्रकट जहाँ, हरसल मनु महाराज।
जे स्वरूप मुनि मन बसै, दरस भेल से आज॥14॥

जिनकर सानिध्य कलप तरू के समान
जिनकर यश कामधेनु के समान छै।
जौने जड़ चेतन के स्वामी कहलावै आरू
ब्रह्म-विसनु-महेश नित करै ध्यान छै।
जिनकर वल पर धरति ठिकलोॅ होलोॅ
जिनकर वलें असथिर आसमान छै।
भनत विजेता राजा मनु सनमुख तौने
प्रकट भेलोॅ छै वहेॅ राम भगवान छै॥90॥