भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतर / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुलसी और त्रिलोचन में अन्तर जो झलके

वे कालान्तर के कारण हैं । देश वही है,

लेकिन तुलसी ने जब-जब जो बात कही है,

उसे समझना होगा सन्दर्भों में कल के ।

वह कल, कब का बीत चुका है--आँखें मल के

ज़रा देखिए, इस घेरे से कहीं निकल के,

पहली स्वरधारा साँसों में कहाँ रही है;

धीरे-धीरे इधर से किधर आज बही है ।

क्या इस घटना पर आँसू ही आँसू ही ढलके ।


और त्रिलोचन के सन्दर्भों का पहनावा

युग ही समझे, तुलसी को भी नहीं सजेगा,

सुखद हास्यरस हो जाएगा । जीवन अब का

फुटकर मेल दिखाकर भी कुछ और बनावा

रखता है । अब बाज पुराना नहीं बजेगा

उसके मन का । मान चाहिए, सबको सबका ।