भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अइले दिवाली लै केॅ जोतिया के धार / बैकुण्ठ बिहारी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 26 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बैकुण्ठ बिहारी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अइले दिवाली लै केॅ जोतिया के धार
हमरी टुटली झोपड़िया में बसै छै अन्हार

पेटवा जरै छै हमरोॅ दिन आरो राती
जरी-जरी हारी जाय छै दियरा के बाती
कहाँ से सजैवै हमें दिया के कतार

चान सुरूज के डेरा हमरी झोपड़िया
सगरे दुआर झलकै एक्को नै केबड़िया
केना केॅ अइत लछमी हमरोॅ दुआर

कहियो तेॅ लछमी फेरती नजरिया
आँखोॅ के जोत गेलै जोहतें डगरिया
भेलै उमरिया चालिसोॅ के पार

साथैं दलिदरा के बितलै उमरिया
हेनो कि तोड़ली नै जाय नेह-डोरिया
मिली-जुली रहबै की आबेॅ दोनों यार