भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर चाहे तो मूर्ख भी विद्वान बन सकता है / दयाचंद मायना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 3 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयाचंद मायना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर चाहे तो मूर्ख भी विद्वान बन सकता है
सत्संग कारण ढोर पशु, इन्सान बन सकता है...टेक

उठत-बैठत चलते-फिरते, ध्यान पढ़ण मैं लागै
सहज-सहज टुक थोड़ा-थोड़ा, कम सौवै घणा जागै
मन की चिन्ता, तन की दूही, नींद आलकस त्यागै
तहजीब, अक्कल फल मिलज्या सै, दो-चार साल मैं आगै
जैसे लैस नायक सिपाई से कप्तान बन सकता है...

आदि कवि हुए वाल्मीकि, पढ़ राम कहानी लिखगे
जिनै पीकै जीव अमर होते, इसी अमृतवाणी लिखगे
संस्कृत भाषा के मैं बात घणी स्याणी-2 लिखगे
नए-नए इतिहास बहोत-सी कथा पुरानी लिखगे
मनुष्य, देवता पूजत ऋषि महान् बन सकता है...

तिणका-2 चुगणे से नर, जब कट्ठा अन्न हो सै
दाणे-दाणे रास मनुष्य, टोपा-2 धन हो सै
लागण लागै ज्ञान के अंकुश, जब काबू मैं मन हो सै
करतब से करतार हार जा, इसी लग्न तन हो सै
एक-एक ईंट चणने तै, महल-मकान बन सकता है...

करतब से कंगाल मनुष्य धनवान धनी होज्या सै
हीरे मोती, मोहर, असर्फी, लाल, मणी होज्या सै
कह ‘दयाचन्द’ महामूर्ख गुण की खान बन सकता है...