भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर नहीं मैं होता / पीयूष वर्मा

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस बेढंगी-सी दुनिया में
अगर नहीं मैं होता,
सोचो, दुनिया कैसी लगती
और मेरा क्या होता?

दूर किसी ग्रह के कोने में
बैठा तब मैं रोता,
अथवा कहीं अँधेरे में, मैं
पड़ा-पड़ा तब सोता।

अध्यापक तब कक्षा में फिर-
मुर्गा किसे बनाते,
और बनाकर मुर्गा, किससे
कुकडूँ-कूँ करवाते?

माँ किसके तब कान खींचती
पापा कब दुलराते,
दादा-दादी किसे प्यार से
अपने पास बुलाते?
तुम बच्चों की खातिर तब फिर-
लिखता कौन कहानी,
और सुनाता गीत कौन तब
सुंदर और लासानी।

लिख-लिखकर तब कौन सैकड़ों
पन्ने काले करता
उन पन्नों से संपादक का
दफ्तर कैसे भरता।