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अगहन में / श्याम नारायण मिश्र

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अगहन में ।

चुटकी भर
धूप की तमाखू,
बीड़े भर दुपहर का पान,
दोहरे भर
तीसरा प्रहर,
दाँतों में दाबे दिनमान,

मुस्कानें
अंकित करता है
फसलों की नई-नई उलहन में ।

सरसों के
छौंक की सुगँध,
मक्के में गुँथा हुआ स्वाद,
गुरसी में
तपा हुआ गोरस,
चौके में तिरता आल्हाद,

टाठी तक आए
पर किसी तरह
एक खौल आए तो अदहन में ।

मिट्टी की
कच्ची कोमल दीवारों तक,
चार खूँट कोदों का बिछा है पुआल,
हाथों के कते-बुने
कम्बल के नीचे,
कथा और क़िस्से, हुँकारी के ताल;

एक ओर ममता है, एक और रति है,
करवट किस ओर रहे
ठहरी है नींद इसी उलझन में ।