भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अचानक खिंच गई ये कौन सी तस्वीर आंखों में / रतन पंडोरवी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:32, 13 अगस्त 2018 का अवतरण ('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतन पंडोरवी |अनुवादक= |संग्रह=हुस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{KKGlobal}}

 
अचानक खिंच गई ये कौन सी तस्वीर आंखों में
ज़बां पर अब कहां है आ गई तक़रीर आंखों में

कोई थामे मिरे दिल को जिगर को और सीने को
निशाना बांध के मारा है उस ने तीर आंखों में

तअज्जुब है तसव्वुर तो तिरा करता हूँ ऐ हम दम
मगर फिरती है मेरी अपनी ही तस्वीर आंखों में

वो आग़ाज़े-महब्बत की कहानी किस तरह भूले
दमे-आख़िर भी फिरती है वही तस्वीर आंखों में

सहर आई अंधेरा यास का आंखों तले छाया
रही गो रात भर उम्मीद की तनवीर आंखों में

तसव्वुर में हुजूरी का मज़ा मालूम होता है
ख़ुदाया फिर रही है कौन सी तस्वीर आंखों में

'रतन' बचना बड़ा मुश्किल है इस घमसान के रन से
यहां चलते हैं आंखों के हज़ारों तीर आंखों में।