भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अज अनादि अविगत अलख / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:24, 29 अक्टूबर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग माँड-ताल कहरवा)

अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार।
 बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार॥-१॥

 आर्तिहरण सुखकरण शुभ भुक्ति-मुक्ति-दातार।
 करो अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार॥-२॥

 पर्‌यो पतित भवकूप महँ सहज नरक-‌आगार।
 सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार॥-३॥

 पलक-पलक आशा भर्‌यो, रह्यो सुबाट निहार।
 ढरो तुरंत स्वभाववश, नेक न करो अबार॥-४॥