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अठोतरीमाला / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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मन सुमिरु कर्त्ताराम। सव सन्त जन विश्राम॥
भरपूर लोक अलोक। जेहि व्याप हर्ष न शोक॥
कत यौयुगी चलि जाहि। सो पुरुष विनशन नाहि॥
जँह भवन भूसा केर। तँह कनक भरतन वेर॥
जँह भक्त को संदेह। तँह आपु धरिया देह॥
सतसंग भौ चित चेत। भगतावली कहि देत॥
प्रह्लाद, संकट पाव। नहि लागु तेहि तनवाव॥
धु्रव धरिया विश्वास। तेहि दियो अविचल वास॥
नारद, शरद, सनकादि। उन अन्त भाषी आदि॥
चलि गये वलि को द्वार। धरि बावना अवतार॥
हरिचंद संग सुत नारी। सत राखिया परचारी॥
वासिष्ट वो हनुमान। गहि रचे निश्चल ज्ञान॥
उपजो विभीषण भाव। तव राज लंका पाव॥
शवरी, अहल्या नारि। छिनु माँह लीनो तारि॥
धीवर सहित परिवार। नहि तरत लागो वार॥
जब अम्वरिष किहु जाय। नहि परन पाई साप।
जँह द्रौपदी पूकार। तँह बढो वसन अपार॥
पांडव धरी परतीति। लियो राज कौरोहिँ जीत॥
मोरध्वजो शिर दीन्ह। हरिलाय अंक मेँ लीन्ह॥
मन विदुर लीनो मानि। लियो साग बहुत अखानि॥
दिहु सुपच शोभा दानि। जेहि लोक पियत न पानि॥
दिन रंक द्विज को राज। ऐसो गरीब नेवाज॥
अजमिल पिंगल, गजराजा। को वनो आछो काज॥
शुक अंड भो शुक देव। असमूल मंत्र को भेव॥
जान्यो जनक, जड-भर्त। प्रभुनाम को निज अर्थ॥
बद्रिनाथ, दत्तोत्रेय। इनके कृपा बहुतेय॥
गोरख, मछिन्द्रानाथ। पुनि भये समुझि सनाथ॥
देवेन्द्रनाथ अतीत। जिन राम-नाम प्रतीत॥
भरथरी, गोपीचन्द। हरि भगति भे निर्द्वन्द॥
रहनी रहे रमनन्द। कलि प्रकट पूरन चंद॥
प्रभु विष्णु, माधव-चार्य। किय घनो जीवन कार्य॥
निम्वार्क हतो निजपाद। जीवन मुकुत विख्यात॥
जयदेव पालो पाँच। पचि गहो दृढ़करि साँच॥
नमदेव, ज्ञानि, कबीर। हिन्दु तुरुक गुरु पीर॥
त्रिलोचन, गलगलानन्द। हरि भगति किहु स्वच्छन्द॥
अनँतनँद उपजे अग्र। जिन काम बनो समग्र॥
भये भक्त सुरसुरनंद। जेहि कृपा कीन्ह गोविन्द॥
भवनन्द, और रविदास। जिन हिये हरिविश्वास॥
नरहरि, सदन, सुखनंद। जिन मिले आनँद कन्द॥
पीया, सेना, धन भाग। जिन उर उपज अनुराग॥
पृथु, परशु, रंका, वँक। परताप भये निःशंक॥
बदशाहि वलखकि डारि। महरम भये परचारि॥
दादू, बुढ़ान, कमाल। पुनि भये निपट निहाल॥
द्विज, मुर्तुजा, वाजीद। जिन कायमँह मसजीद॥
सुर, तुलसि, नामा भक्त। जिन सुयश बाढो जबत॥
घुर घाट मँह मकरन्द। जेहि हिये अति आनन्द॥
काँधा, कुबा, हरिवंश। जिन पडो प्रभु को अंश॥
परमनँद, माधवदास। जिन भली पूजी आस॥
मिर, पद्म, करमा सीत। जिन भक्ति ते भव जीत॥
कुल, व्यास, नरसी, कीर। ये पुनि महामति धीर॥
ज्ञानी गोविन्द, मुरारि। प्रभु मिले जन मन वारि॥
शोम, मैन, गोवर्द्धन। सोवत जगे तन मन्न॥
शंभू, किशुन, हरिप्यार। योगा हु उतरे पार॥
कामा, गुरु जंगी जानि। जिन संग सारँग पानि॥
खोजि, टील टीकमदास। चहुँओर वसत सुवास॥
नानक, चतुर्भुज बनी। दिन डारि मनकी मनी॥
वन्दाँ विनोदानन्द। जिन दया सकल अनन्द॥
कत कहों सन्त अनंत। तस भक्त जस भगवंत॥
प्रभुदास धरनीदास। नहि अवर दूसर आस॥