भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधर-सुगन्ध / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:10, 11 जनवरी 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादलों को चीरकर
सलज्ज कुमुदिनी-सी
लगी
आँख चाँद की सजल ।

डुबोकर पोर-पोर
दिगन्त का हर छोर
हुआ
हृदय की तरह तरल ।

अधर-सुगन्ध पीकर
प्रीति की रीति बने
छलक
मधुर चितवन चंचल ।
(12-6-1983)