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अन्नदाता / गुंजनश्री

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राति सुतय काल
कहैत छली-
यौ! आई चिक्कस
सनैत काल
अभरैत छल
शोणित,
बड्ड दुरदुरेलियैक
मुदा नै हटल फराक
अंत मे सानि देलियैक
आ खुआ देलहूँ आहाँके

कोन ठीक
आहाँक ठंढायल शोणित मे
जीबि जाइ
एकटा हारि क' मरल
अन्नदाता के
जिनगी
आ आहाँ बनि जाइ
राजपशु स' नर वा
मशीन स' मनुक्ख
किन्सैत!