भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपना घर / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 22 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक-एक ईंट जोड़कर हमने ,
बनाया अपना सुन्दर घर.
अपने घर में रहें सहज हम,
दूजों के घर लगता डर.
बच्चे हों तो करते रौनक,
किलकारी से गूंजे घर.
बिन बच्चों के मकां है केवल,
सूना जैसे हो खँडहर .
घर हो तो हम उड़ें आसमां
लग जाते हैं जैसे 'पर'
घर जैसा भी होता घर है.
जीवन उसमें करें बसर.
आओ रलमिल बनायें सारे.
इक दूजे का अपना घर...