भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी भाषा के लिए / सविता सिंह

Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:14, 28 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी / सविता सिंह }} जीवि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवित रहना अपनी भाषा में

जागना अपने सपनों कि हलकी रोशनी में

चलना अपने लोगों के साथ इतिहास की धूल भरी गलियों में

यह सब कुछ जब धीरे-धीरे अर्थहीन होने लगता है

तब समय प्रेत बन अदृश्य हो जाता है हमारे लिए

और हम उसी की तरह

भटकते हैं दूसरों के घरों शहरों में

लटकते हैं पेड़ से उलटे तड़पते हैं

प्यास और तपिश से

अपनी भाषा के लिए

अपने इतिहास के लिए