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अपने गुरु नीरव-नीरव हैं / मनोज मानव

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अपने गुरु नीरव-नीरव हैं, करते निज कर्म बखान नहीं।
अनमोल करें उपदेश हमें, बस कर्म करो अभिमान नहीं।

हम पास गये जब भी गुरु के हमको उनसे नव ज्ञान मिला,
वह थाह लिये कितनी, इसका हमसे लगता अनुमान नहीं।

उर में अपने जब प्रश्न उठे करते उर से उसका हल हैं,
हम सोच रखें उर में कब क्या इससे गुरु जी अनजान नहीं।

पल भर यदि हो उपलब्ध किसी कवि को पढ़ते हम ध्यान लगा,
यह मन्त्र मिला गुरु से हमको इससे बढ़ के कुछ ज्ञान नहीं।

गुरु पादस्थान वही जग में मिलता हमको सब ज्ञान जहाँ,
नतमस्तक हो हम ध्यान करें गुरु गौरव का प्रतिमान नहीं।

कुछ लोग मिले जग में हमको जिनके अभिमान भरा उर में,
जब ज्ञान मिला सँग छोड़ गये गुरु का करते फिर मान नहीं।

जब ज्ञान मिला पहचान बनी पर मानव धूर्त उन्हें कहता,
पहचान बनाकर जो अपने गुरु का करते गुणगान नहीं।

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आधार छन्द-दुर्मिल सवैया (24 वर्णिक)
सुगम मापनी-ललगा 8
पारम्परिक सूत्र-स 8