भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपराजिता / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 29 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category:चोका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अपराजिता
तू पंचतत्त्व जैसी
तू पृथ्वी तत्त्व
तुझमें गुरुत्व है
सघनता भी
तू है प्रचंड ज्वाला
अग्नितत्त्व- सी
अविरल-प्रबल
प्रवाह तेरा
धर लेती आकार
हर प्रकार;
क्योंकि तू जल तत्त्व
प्राण भरती
तन-मन-जीवन
तू प्राण-वायु
वायु तत्त्व भी है तू
तेरा विस्तार
आकाश-सा है नारी
आँचल-बाँधे
अनगिनत सूर्य
चन्द्रमा-तारे
आकाशगंगाएँ भी;
किन्तु फिर भी
तेरे सम्मान पर
क्यों कोटि प्रश्नचिह्न?
-०-