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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 4 / कुमार रवींद्र

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शोचमग्न रहे बुद्ध
     दिन बीता किसी तरह
                     रात आई

    अँधियारे में निर्णय
    सरल हुआ
    पल भर को
    माना, मन विकल हुआ

   नीचे जल निर्मल था
            ताल में
       ऊपर थी बस काई

चुपके से
छन्दक ने रथ बाँधा
अभी चाँद आया था
बस आधा

पल भर में
    सपने-सी देह हुई
            जैसे पहुनाई

सूर्य उगा
आरती हुईं साँसें
एक-एककर लौटीं
फिर फाँसें

किन्तु मन उपस्थित था
          उसने
   हर फाँस वहीं बिखराई