भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब आराम करे दऽ / प्रभुनाथ सिंह

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:24, 1 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत भइल काम
अब आराम करे दऽ।
बहुत भइल नाम
अब गुमनाम रहे दऽ।
रहल ना रिस्ता,
काम का नाम से।
हो रहल बा नाम,
सगरे बदनाम के।
उसकावऽ मत
अतीत के दिया में,
जरत इयाद के बाती
जइसे जरताऽ जरे दऽ।
जब तक बरऽता, बरे दऽ।
अब आराम करे दऽ।
भलाई करके,
कवन पइबऽ सम्मान ?
अब युगल रहल ना,
जे मानी केहू एहसान ;
सब कुछ बन गइल व्यवसाय,
बिक रहल बा इन्सान,
सेवा, धरम, ईमान,
पद, पदारथ आ इनाम ;
हम हताश नइखीं,
बस, हिम्मत नइखे।
बुद्धिजीवी के जीव,
यदि कुछ कहे के चाहत बा,
त कहे दऽ।
सिआही छिरिक के,
यदि मरे के चाहत बा,
त मरे दऽ।
अब आराम करे दऽ।।