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अब किसी से न गिला है न शिकायत अपनी / अनिरुद्ध सिन्हा
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अब किसी से न गिला है न शिकायत अपनी
हमको इस मोड़ पे ले आई है क़िस्मत अपनी
जब से रिश्तों ने सियासत की जुबां पाई है
घर की दहलीज़ पे रोती है मुहब्बत अपनी
इक न इक रोज़ उन्हें भी तो समझ आएगी
क़तरेक़तरे में छुपी है जो शराफ़त अपनी
ख़ुद से हम रोज़ नई जंग लड़ा करते हैं
रंग लाएगी किसी रोज़ बग़ावत अपनी
जब से मजबूरियाँ पहचान गए हैं उसकी
अब मुहब्बत में है तब्दील अदावत अपनी