भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब भी / अवधेश कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 28 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे अब भी प्यार करना चाहिए ।
मुझे अब भी प्यार करना चाहिए ।
मैं अपने आप को कोंचता हूँ

मुझे अब भी अच्छी चीज़ों में यक़ीन
रखना चाहिए
मैं अब भी मानता हूँ कि
मुझे अब भी अच्छी चीज़ों में यक़ीन
रखना चाहिए

मुझे अब भी स्वप्न देखने चाहिए
मैं जानता हूँ कि
मुझे अब भी स्वप्न देखने चाहिए ।

मुझे अब भी कोशिश करनी चाहिए
मुझे याद है कि
मुझे अब भी कोशिश करने चाहिए ।

मुझे अपने भविष्य को अब भी
ऐसे देखना चाहिए
जैसे कि मेरे पिता ने देखा था ।