भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब मन भज श्री रघुपति राम / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:32, 18 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिन्दु जी |अनुवादक= |संग्रह=मोहन म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब मन भज श्री रघुपति राम,
पल छिन सुमिरन कर तेरो जगत जलधि को,
भरमत फिरत कहे माया के फंदन में।
तजो कपट छल काम॥ मन अब...
सदा कहो सुखकर दुखहर म्नुध्र प्रहरी,
अमित अधम जिन तारे भक्त रखवारे दीन के सहारे।
‘बिन्दु’ बिन गुण ग्राम॥ मन अब...