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अबद / फ़हमीदा रियाज़

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ये कैसी लज़्ज़त से जिस्म शल हो रहा है मेरा
ये क्या मज़ा है कि जिससे है उज़्व-उज़्व बोझल
ये कैफ़ क्या है कि साँस रुक-रुक के आ रहा है
ये मेरी आँखों में कैसे शहवत-भरे अँधेरे उतर रहे हैं
लहू के गुम्बद में कोई दर है कि वा हुआ है
ये छूटती नब्ज़, रुकती धड़कन, ये हिचकियाँ-सी
गुलाब ओ काफ़ूर की लपट तेज़ हो गई है

ये आबनूसी बदन, ये बाज़ू, कुशादा सीना
मिरे लहू में सिमटता सय्याल एक नुक्ते पे आ गया है
मिरी नसें आने वाले लम्हे के ध्यान से खिंच के रह गई हैं
बस, अब तो सरका दो रुख़ पे चादर
दिये बुझा दो