भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभिनेता और श्रमिक / ओसिप मंदेलश्ताम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:03, 7 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओसिप मंदेलश्ताम |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जलक्रीड़ा प्रेमियों के क्‍लब के अहाते में
जहाँ ऊँचे हैं मस्‍तूल, लटके हैं सुरक्षा-पहिए
समुद्र के पास दक्षिण के आकाश के नीचे
बन रही है ख़ुशबूदार लकड़ी की दीवार ।

यह खेल है जो खड़ी कर रहा है दीवार ।
काम करना भी क्‍या एक तरह का खेल नहीं ?
चौड़े मंच के ताज़ा तख़्तों पर
कितना रोमांचक है पाँव रखना पहली बार !

दुनिया की डेक पर खड़ा अभिनेता भी है पोतचालक,
लहरों पर बना है उसका घर।
स्‍नेह भरे हाथों के भारी हथौड़े से
नहीं डरी है वीणा कभी आज तक ।

कलाकार का कथन होता है श्रमिक का भी कथन :
सच कहें तो हमारा सत्‍य भी होता है एक ही !
जिस उद्देश्‍य के लिए जीता है मिस्‍त्री
उसी के लिए जीता है सर्जक भी ।

धन्‍यवाद सबका ! रात-दिन मिलकर
बनाते रहे हम, लो, अब तैयार हुआ घर ।
सख्त भंगिमा वाले इस मुखौटे के भीतर
छिपाए होता है मजूर आने वाले समय की विनम्रता ।

कविता की प्रसन्‍नचित्‍त पंक्तियों मे से महक आती है समुद्र की
खोल दिए गए हें रस्‍ते पोत के - शुभयात्रा !
एक साथ प्रस्‍थान करों भविष्‍य की सुबहों की ओर
ओ अभिनेता, ओ श्रमिक, दोनों के लिए मना है आराम करना !

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह