भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अम्बेडकरी चादर / अनिता भारती

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 29 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूख प्यास और दुख में
सर्दी, गर्मी, बरसात में
ज़मीन पर, कुर्सी पर
तुमने जी भर ओढ़ा, बिछाया, लपेटा
अम्बेडकरी चादर को

फिर तह कर चादर
रख दी तिलक पर
और तिलक धारियों के साथ सुर मिलाया
हे राम ! वाह राम !

तुमने छाती से लगाई तलवार
और तराजू बन गया तुम्हारा ताज
पर जूता !

जूता तो पैरो में ही रहा
समझौते की ज़मीन पर चलते-चलते
कराह उठा, चरमरा उठा
हो गए है उसकी तली में
अनगिनत छेद

उन छेदों से छाले
पैरो में नहीं
छाती पर ज़ख़्म बनाते है
और लहूलुहान पैर नही
जूतों की जमातें हैं