भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अयि सघन वन कुन्तले / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:30, 30 अगस्त 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अयि सघन वन कुन्तले
किससे मिलने यूँ सजधज कर उतरी व्योम तले?

धूप छाँह की साड़ी पहने
कानों में हीरे के गहने
किसके साथ रात भर रहने
आई सांझ ढले?

रिमझिम रिमझिम बजते नुपुर
लिपट रहे कम्पित उर से उर
रोम-रोम से रस के आतुर
निर्झर फूट चले

अयि सघन वन कुन्तले
किससे मिलने यूँ सजधज कर उतरी व्योम तले?