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अरहो बन के खरही कटैहो बाबा / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में कन्या को सुपात्र के हाथ सौंपने पर पिता के निश्ंिचत होने और माता-पिता के वियोग से बेटी की आँखों से मोती की तरह आँसू ढुलकने का वर्णन हुआ है।

अरहो<ref>घना जंगल; अरण्य</ref> बन के खरही<ref>खर; एक प्रकार की घास</ref> कटैहो<ref>कटवाना</ref> बाबा, बिरदाबन<ref>वृंदावन</ref> बिट बाँस<ref>बाँस के पौधों का समूह</ref> हे।
ऊँची कै मड़बा छरैहऽ<ref>छाजन दिलवाना</ref> हो बाबा ऐतै<ref>आयेंगे</ref> सजन बरियात हे॥1॥
थरिया में काँपे दूबि रे अछतिया, मड़बा काँपे दूबि धान हे।
धिआ ले काँपे बाबा अप्पन बाबा, आबे<ref>अब</ref> धिआ परली सजन हाथ हे।
आबे सुतिहऽ<ref>सोना</ref> निचिंत हे॥2॥
जँघियाँहिं काँपे बेटी दुलारी बेटी, मोती जोगे<ref>योग्य</ref> ढरै नयना लोर हे॥3॥

शब्दार्थ
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