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अवधनाथ, ब्रजनाथ, तुम्हारा सदा मैं दास रहूँ / बिन्दु जी

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अवधनाथ, ब्रजनाथ, तुम्हारा सदा मैं दास रहूँ।
जहाँ-जहाँ भी जन्मूँ जग में पद पंकज के पास रहूँ॥
मणि पर्वत या गोवर्धन गिरी का तरीन मूल बना देना।
या प्रमोद वन, या वृदावन का, फल फूल बना देना॥
या सरिता सरयू, या कालिन्दी का, कूल बना देना।
अवधभूमि, ब्रजभूमि कहीं के पथ की धूल बना देना॥
या बनकर सरचाप रहूँ या बनकर बंशी बाँस रहूँ।
जहाँ-जहाँ भी जन्मूँ जग में पद पंकज के पास रहूँ॥
ब्रजनिकुंज की बाट बनूँ या केवट गंगा का घात बनूँ।
शुक का हृदय बनूँ या नारद वीणा का ठाट बनूँ॥
युगल नाम का जप करता प्रतिपल, प्रतिक्षण प्रतिस्वाँस रहूँ।
जहाँ-जहाँ भी जन्मूँ जग में पद पंकज के पास रहूँ॥