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अशेष प्रेम प्रत्यय / परिचय दास

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कई बेर सांझी के बेरा
बँसवारी के ललचौंह में चुपचाप बइठल
एगो छेड़ देईलाँ किस्सा कहनी
अढ़उल के फूल के गप्प
गुल्लर के पेड़ के अंतरंग अलाप
पृथिवी के शब्दहीनता के भाव
आत्मा के उड़ान भरत लइकन के उजास
अकास के इंद्रधनु के भित्तर बइसल एगो कोमल कविता के
कहीलाँ-
हे हमार सारंगा, अब तू कथा-कहनी खाली ना बाड़ू
अब तू हऊ एगो स्पर्श, एगो मन के विस्तीर्ण वितान
एगो जूड़ा के मनोमय बंधन
एगो सुगंध विश्वास के

हे प्रियतमा,
हमनी के आपन सनेह
परे हs भाषा से
कवनहूँ दर्शन सिद्धांत से
काल, युक्ति, निन्दा, द्वेष आ चतुराई से
सगरो क्रिया पद आ विशेषण छूट जालें इहवां
सगरो व्याकरण आपन गति छोड़ देलें
हमनी के अनुराग के छांह में।
कवनों सावन-अगहन के हरियरी तोहके उतार दिहलस हमरा एक-एक पंक्ति में, ई पतो ना चलल

कवनों फगुनहट उतरि आइल
तोहरे रंग के कसक के साथे
हर पन्ना पर, हर पेड़ पर,
 हर पुनुई पर, हर फूल में, हर कन में, हर भंगिमा में।

कवनो हाट बजार में अबीर आ गुलाल के पुड़िया में,
 कवनो ताज़ा फल के सुगंध में सपनीले अकास में
उतरि आइल एगो बतकही-नीयन
एगो संवेदना नीयन
एक-एक छुवन में
एक-एक प्रतीक्षा में
दुपहरी के सन्नाटा में कोयल के बोल नीयन
शब्द-रस-गन्ध से उतरत आ समय के अनुवर्तन में समात
असीम के प्रत्यय में

कउड़ा के आँच जइसन भीतर के सच के तुहऊँ देखलू आ हमहूँ
ईहे सपना बनल तोहरा-हमरा अनुराग के बिम्ब

लगेला कि एतना शब्द के दबाव
सूचना के अधिकाई
ताकत के जबरजोत
भीड़ में बिलाइल अस्मिता
बावजूद एकरा के तूं उतर आवेलू टौंस, गंगा, देवताल आ तुलसी ताल के अतल-अजस्र प्रवाह में
न तूं लउकलू हमके ना हम लउकलीं तोंहके
शब्द से परे खोजीलाँ तोंहके
कविता ओहिजू हवे
स्पर्श-भाव, स्पर्श-गन्ध, स्पर्श-अनुराग: भाव-स्पर्श!

जवन सृष्टि हमरा भित्तर तूं कइलू
ऊ पुरइन पात नीयन निर्मल सुचिक्कन
दिगंत के प्रसार जइसन
सगरो राजा महराजा करिन्दा वज़ीर के चमकत ऐश्वर्य से परे
ओके धक्का देत
 काला-नमक चाउर नीयन झक्क शुभ श्वेत तोहार आकर्षण
दूब नीयन पाथरो में उगि आइल लगाव
निर्जन आन्तरिकता में
दुनिया के सगरो भय आ संकोच से अलग

चन्द्रमा निहारेला पृथ्वी के
अइसन निर्जनता में
तोहार जुड़ाव के सुलभ्य छन्द
गाँव के पोखरी के भीतर खिलल एगो फूल के सुन्दरता नीयन
निद्राविहीन समय में एगो लोरिकी के किस्सा जइसन प्रीति
बड़हन लोगन के का पता कि आकर्षण आ प्रीति न होखे
तs न कोयल के कूक होखे न पुरवाई बयार चले
मनई रहि जाय एगो निर्वाक खंडित मूर्ति
इतिहास में विलीन मनुष्य के गाथा, परीकथा, लोककथा आ गाँव के कुंआँ के भीतरी स्वर
ना पता प्रेम के परिभाषा
देश समाज के साक्षी हवें भाषा-रहित हमनी के हृदय के कम्पन के
अन्हियार सांझ में
सावन के हरियर बरखा में भीजल मन
भीजल माटी के सोन्ह गंध

आरती के घंटी ध्वनि में डूबल सनेह में सुवासित चन्द्रमा आ तरई
राती के झिंगुर के गान से समकालीन कविता नीयन
एगो बिम्ब उभर आवेला नेनुवा के फूल नीयन तोहरा प्रीति के
अखरतिजिया के त्यौहार नीयन
अमृत बेला में तोहार
 कोमल गांधार अनुराग
 सुक्खल मटियो पर एगो अभिमंत्रित अभिलाषा
आ चाह के रंग बोध के साथ
सपना में भरल कथा के साथ
मुट्ठी भर अच्छत के पवित्रता के साथ।