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असमय / सियाराम शरण गुप्त

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ये जीव-जंतुगण पा कर तीव्र क्लेश,
हैं हो चुके अहह नीरद! भस्म-शेष।
दावाग्नि से जल चुका वन प्रांत सारा,
बरसा रहे अब किस लिये वारि-धारा?