भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असीमित संभावना / आरती 'लोकेश'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती 'लोकेश' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असीमित संभावना के घुँघरु, अपने पग में बाँध फिरूँगी,
अगणित आकांक्षा के कंगन, हाथ पहन आसमान उड़ूँगी।
अनंत स्वप्न के सत्यलोक में, स्वंतत्र समर्थ मैं विचरूँगी,
नारी हूँ, तप पतवार के बल, बाधा लहरों को ठेल बढ़ूँगी।

अतुल्य क्षमताओं के सिंधु से, मुक्ता चुन पावन हार रचूँगी,
सुरम्य वर्णों की तूलिका से, नयनों के दृश्य अभिराम रगूँगी।
द्वादश श्रुतियों सप्त सुर संग, गीतों से उर अभिषेक करूँगी,
नारी हूँ, अपार श्रद्धा के कानन, अछोर छोर को धाव गहूँगी।

अचल धरा की रज धारण कर, आकृति नव निर्माण करूँगी,
अपरिमित कल्पना तंतु धागे, सकल मगन परिधान बुनुँगी।
समग्र अंतरिक्ष आँचल भर के, नव आयामित श्वास भरूँगी,
नारी हूँ सतत कर्म की धार से, पाहन भीतर विस्फोट करूँगी।